कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा : भगवान कृष्ण की यह जीवनी हमेशा मेरे रोंगटे खड़े कर देती है क्योंकि यह कहानी हमें बता रही है कि भगवान कृष्ण को अपने सच्चे भक्तों से कितना प्यार है, चाहे उनका धर्म और जाति कुछ भी हो।
इस लेख में हमने भगवान श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन के बारे में लिखा है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और इस लेख को पढ़ते हैं। चाहे तो आप यह भी पढ़ सकते है की भगवान कृष्ण कौन हैं।
कृष्ण भगवान का जीवन परिचय | Krishna Bhagwan Ki Jivan Katha
द्वापरयुग में मथुरा का राजा उग्रसेन थे। उनके पुत्र का नाम कंस था और उनके पुत्री का नाम देवकी थी। कंस का बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था।
एकदिन कंस ने आकाशवाणी सुना कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया और साथ ही अपने पिता को भी कारागार में डाल कर स्वयं मथुरा का राजा बन गया।
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कृष्ण भगवान का जन्म ! Krishna Birth Story in Hindi
कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के १२ बजे हुआ था। कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से भारत, नेपाल, रूस सहित विश्वभर के सभी देशों में मनाया जाता है।
कृष्ण भगवान का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। कृष्ण के पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम माता देवकी थी। कृष्ण उनके ८ वीं संतान थे।
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जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तब कारागृह के द्वार स्वतः ही खुल गए और सभी सिपाही निंद्रा में थे। वासुदेव के हाथो में लगी बेड़िया भी खुल गई। तब वासुदेव अपने पुत्र को लेकर कारागृह से निकल पड़े।
गोकुल के निवासी नन्द की पत्नी यशोदा को भी संतान का जन्म होने वाला था। वासुदेव अपने पुत्र को यशोदा के पास रख कर उनकी संतान को लेकर मथुरा चले आए।

कंस अपनी बहन देवकी के सभी बच्चों को मारने की व्यवस्था करता है। जब कंस इस नवजात शिशु को मारने का प्रयास कर रहा था तब शिशु बालिका हिंदू देवी दुर्गा के रूप में प्रकट होती है, तथा उसे चेतावनी देते हुए कि उनकी मृत्यु उसके राज्य में आ गई है।
कृष्ण की बचपन की कहानी
कृष्ण भगवान के एक बहन और एक भाई थे। कृष्ण भगवान भाई का नाम बलराम और बहन का नाम सुभद्रा थी। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया । उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया।
बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। भगवान कृष्ण ने स्नान करती गोपियों के कपड़े चुराकर उन्हें एक सिख दिया था।
राधा व कृष्ण का प्रेम
भगवान कृष्ण ज्यादातर समय अपने प्रिय सखी राधा के साथ बिताना पसंद करता था । उनके साथ खेला, कूदा, रास रचाए, इतना ही नहीं कृष्ण ने सबसे ज्यादा बंसी राधा के कहने पर बजाई। राधा-कृष्ण का प्रेम ऐसा था जिसकी आज भी मिसाल दी जाती है। लेकिन कृष्ण ने राधा से शादी नहीं की ।

राधा व कृष्ण के वियोग
एक दूसरे से बहुत प्यार करने के बाद भी दोनों की मिलान नहीं हो पाया। राधा व कृष्ण के वियोग के समय राधा की आयु १२ वर्ष एवं कृष्ण की आयु ८ वर्ष थी।
राधाकृष्ण का प्रेम में कोई शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि आध्यात्मिक था । राधा और कृष्ण जब आखिरी बार मिले थे तो राधा ने कृष्ण से कहा था कि भले ही वो उनसे दूर जा रहे हैं, लेकिन मन से कृष्ण हमेशा उनके साथ ही रहेंगे।
श्री कृष्ण ने किया मामा कंस का वध
कृष्ण ने वृंदावन में सभी से बिदा लिया और अक्रूर जी श्रीकृष्ण व बलराम को मथुरा लेकर आये जहाँ कंस ने कृष्ण के प्राणान्त की योजना बना रखी थी। श्रीकृष्ण ने इसी समय मामा कंस का वध किया और मथुरावासियों को उसके आतंक से मुक्त करा दिया। श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया और अपने माता पिता से मिले।

श्रीकृष्ण ने द्वारका स्थापित की
एक समय आया जब भगवान कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका में एक नया नगर बसाया। श्रीकृष्ण की इस नगरी का नाम द्वारका था। अनेक द्वारों का शहर होने के कारण इस नगर का नाम द्वारका पड़ा।
श्री कृष्ण का विवाह
श्री कृष्ण के पहली पत्नी देवी रुक्मिणी थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणीजी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। देवी रुक्मिणी को कृष्ण से प्रेम हो गया था।
देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणीजी का भाई का नाम रुक्मि था और वो अपनी बहन का बिबाह शिशुपाल से करना चाहता था।
रुक्मिणी ने प्रेमपत्र लिखकर ब्राह्मण कन्या सुनन्दा के हाथ श्रीकृष्ण के पास भेज दिया। जब उन्हें रुक्मिणी का प्रेमपत्र मिला तो प्रेम पत्र पढ़कर कृष्ण को समझ आया कि रुक्मिणीजी संकट में हैं तब कृष्ण ने रुक्मिणीजी का अपहरण करके बिबाह किया था। पूरी सच्चाई लिंक पर क्लिक करके पढ़ें भगवान कृष्ण के शादी के बाद कितने बेटे हुए ।

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा, जामवंती , कालिंदी , मित्रवृंदा , नाग्नजिती, भद्रा और लक्ष्मणा से शादी किया था। ऐसा कहा जाता है श्रीकृष्ण की रानियों की संख्या 16000 से अधिक थी।
कृष्ण-सुदामा की मित्रता
भगवान कृष्ण के मित्र और सहपाठी सुदामा गरीब ब्राह्मण परिवार से थे। अपने बच्चों का पेट भरना भी उनके लिए मुश्किल हो गया था।
एक दिन सुदामा की पत्नी ने कहा कि “हम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न ?” इतना बोलते-बोलते उसकी आँखों में आँसू आ गए। ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा।
पत्नी ने सुदामा से कहा, “आप कई बार कहते हो कृष्ण के साथ आपकी बहुत मित्रता है। वे तो द्वारका के राजा हैं। आप उनसे मिलने के लिए जाना चाहिए, तो आपकी हालत देखकर बिना मांगे ही कुछ न कुछ मदद कर देंगे।
बड़ी मुश्किल से सुदामा कृष्ण के साथ मिलने के लिए तैयर हुआ। तब सुदामा उनके पत्नी को बोलै की दोस्त के साथ मिलने जा रहा हु, खाली हाथ नहीं जा सकता। तो सुदामा के पत्नी ने आस पड़ोस से चार मुट्ठी चावल मांगकर लाईं और सुदामा को बांध के दे दिया।
सुदामा जब द्वारका पहुंचे तो वहां सोने की नगरी देखकर हैरान रह गए। भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े। कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है? तब सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली। फिर भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे।

सुदामा संकोचवश कुछ मांग नहीं सके। सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचने लगे कि पत्नी पूछेगी कि क्या लाए हो तो वह क्या जवाब देंगे।
सुदामा घर पहुंचे तो देखा वहां झोपड़ी की जगह पर एक राजमहल खरा था। तभी राजमहल से उनकी पत्नी बाहर आईं। सुदामा से कहा, देखा आपकी मित्र ने हमारी गरीबी दूर कर हमारे सारे दुःख हर लिए।
श्री कृष्ण ने किया शिशुपाल का वध
श्री कृष्ण अपने पिता वासुदेव जी की बहन अर्थात् अपनी बुआ के घर गये तब श्री कृष्ण की बुआ ने उनसे वचन लिया कि वे शिशुपाल का वध नहीं करेंगे। अपनी बुआ को भी दुखी नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने वचन दिया कि वे शिशुपाल की १०० गलतियाँ क्षमा कर देंगे, परन्तु १०१ वीं भूल पर वे उसे अवश्य दण्डित करेंगे।
महाभारत काल में राजकुमार युधिष्ठिर के युवा राज्याभिषेक के समय, शिशुपाल श्री कृष्ण को अपशब्द कहे जा रहा था, लेकिन अपनी बुआ को दिए बचन के लिए कृष्ण चुप थे। लेकिन शिशुपाल अपमान किये जा रहा था ।
अपमान करते करते उसे ज्ञात नहीं रहा की कितने पाप किया और १०० अपशब्द पूरा होने के बाद जब १०१ अपशब्द कहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का आव्हान किया और इससे शिशुपाल का वध कर दिया।
महाभारत युद्ध
महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के पक्ष में थे । इस महान युद्ध पर श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। इस युद्ध में पांडव और कौरवों का आमना सामना हुआ था। महाभारत युद्ध 18 दिन तक चला था और अंत में जीत पांडवों की हुयी थी। ऐसा कहा जाता है की महाभारत तीन कृष्ण थे, जानिए पूरा सच।

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श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया
महाभारत युद्ध के अंत होने के बाद, दुर्योधन के कहने पर अश्वत्थामा ने नींद में सोते पांडव पुत्रों को धोखे से मार दिया, तो पांडव और भगवान कृष्ण अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम में पहुंचे। तब अश्वत्थामा ने पांडवों में ब्रह्मास्त्र से आक्रमण किया।
यह देखकर अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोर दिया। महर्षि व्यास ने दोनों ब्रह्मास्त्र को टकराने से रोक ने के लिए अश्वत्थामा और अर्जुन को अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। क्यों की दोनों ब्रह्मास्त्र अगर टकरा जाते तो पृथ्बी का बिनाश निश्चित था। तो अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भाशय की ओर बदल दि।
यह देखकर भगवान कृष्ण क्रोधित हो गए , अपनी सुदर्शन चक्र से अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि को निकाल दिया जिससे उसके माथे पर एक घाव हो गया और कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार साल तक इस धरती पर भटकते रहोगे। तुम्हारे शरीर से बदबूदार घाव की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह पाओगे। कोई तुम्हें पानी के लिए पोंछेगा भी नहीं।
गांधारी ने दिया था यदुवंश के नाश का श्राप
१८ दिन चले महाभारत के युद्ध के अंत में पांडवों की जीत हुयी और कौरवों के समस्त कुल का नाश हुआ। जब हस्तिनापुर में युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

बलराम जी के देह त्यागने के बाद एक दिन श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे, तब एक शिकारी उधर से जा रहा था और उसे लगा की कोई हिरन है और बिना कोई विचार किए वहीं से एक तीर छोड़ दिया जो कि श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा।
शिकारी पास जाकर देखा तो उहा पर श्रीकृष्ण थे। इसके बाद उसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने उसे कहा की जो में चाहता था तुमने वह किया है और इसके लिए तुम्हे स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी।
इसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए और भगवान कृष्ण की मृत्यु हो गयी। फिर कृष्ण की मृत्यु के बाद अर्जुन ने भगवान कृष्ण का अंतिम संस्कार किया। लेकिन क्या आपको पता है अपना शरीर छोड़ने समय भगवान कृष्ण कितने बर्ष के थे ? तो आपको बताना चाहूंगा, देह त्यागने के समय भगवान श्री कृष्ण 125 वर्ष के थे। भगवान कृष्ण के विदा होते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई और यादव कुल नष्ट हो गया ।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न :
प्रश्न : कृष्ण का जन्म कहां हुआ था ?
कृष्ण भगवान का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था।
प्रश्न : कृष्ण का जन्म कब हुआ था ?
कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के १२ बजे हुआ था।
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